क्या जानते हो तुम प्रेम के निराकुश क्षणों में कितनी मधुर होजाती हैँ जलन फिर प्रेम की इस आत्यंतिक घड़ी में न तुम बच पाते न हम कितना सुखद हो जाता हैँ मरण भी फिर ज़ब अधरों के रस कंणो से भी तृप्त नही हो पाते ये मधुर क्षण ©Parasram Arora निअंकुश क्षण....