चित्त की पुकार कहाँ तुम सो रही, बिन बात के रो रही, उठो, जागो ध्यान करो, अपने चित्त की पुकार सुनो। अंदर है कौतूहल मचा, विचारों का बवंडर उठा, तुमको शांत रहना है, अपने अन्तर्मन में खोना है। मन में उठता सैलाब है, भावनाओं का बढ़ता दबाव है, तुमको आगे बढ़ना है, चित्त की पुकार को सुनना है। अंदर बाहर का खेल है, इसे समझने की देर है, रुको, थोड़ा धीरे धरो, असीम शांति को महसूस करो। यह संसार है एक मायाजाल, मुश्किल है इसे पाना पार, तुम्हें अंदर की शक्ति को जगाना है, अपने जीवन को सार्थक बनाना है। उठो, जागो आगे बढ़ो, अपने चित्त की पुकार सुनो। "निशा" ©Nisha Malik #चित्त #पुकार