सिर्फ नुक़्ता या ज़ेर ज़बर की बात नहीं थी साहेब वहां तो कई अल्फ़ाज़ बदले बदले से थे जरा सा रईसों के साथ बैठे क्या महफ़िल में चार रोज उनके मिज़ाज बदले बदले से थे। #माधवेन्द्र_फैज़ाबादी