नदी से विरह के दुःख में समंदर भी रेगिस्तान बन जाया करते है और अपनी नदी की तलाश में भटकते हुए अपनी रेत रूपी राख को उड़ाकर फिर नदी में मिल जाते है नदी बहुत देरी से समंदर के प्यार को समझती है और माफ़ कर समंदर की रेत को खुद में जगह देकर अपना जीवन बना लेती है, फिर अगर फिर नदी से रेत निकाल दो तो नदी सुख जाया करती है, काश रेत बने समंदर को समंदर रहते समझ पाती नदी।। ©KAUSHAL MUNGTA skz #standout