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गिरना और उठना दोनों ही हमारा प्रारब्ध नहीं हमारी

गिरना और उठना दोनों ही हमारा प्रारब्ध नहीं 
हमारी प्रकृति और प्रवृति  का परिणाम है ।
 अनेकानेक झंझाओं को पार कर
 जहाँ स्वयं से लड़ उठने का दुस्साहस  प्रकृति के मस्तक का मौर्य बनता है । 
वहीं कमज़ोरियों के अधीन हो लाचारियों से 
घबराकर गिरने  का  आत्मिक पतन अपरदन के साथ प्रकृति के गोद में समाना  होता है ।

©shalini jha 
  #MahavirJayanti