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मैं बड़ा आदमी बनते-बनते रह गया,,जिस दिन मैं बेईमानी

मैं बड़ा आदमी बनते-बनते रह गया,,जिस दिन मैं बेईमानी से मुकर गया।
सिखा रहे थे लोग बुलंदी रईशी की,,मैं नादां पहली सीढ़ी से उतर गया।
नजीर पेश कर रहा था वो मुझे ऐसे,कि खून पिया, हलक से उतर गया।
न कह सका वो मुझे दिल की बात,कई बार दरवाजे पे आकर चला गया।
कौन जाने खुदा आसमानों पे कहां होगा,मुझे अक्सर अपनी गली में दिख गया।
कमजोर समझने की गफलत न करो,गर मैं आड़े वक्त थोड़ा सा झुक गया।
यहां दर-दर सर-ए-राह शिकारी बैठे हैं,मैं दरिंदों से बचके, तरक्की कर गया।
कुछ पैसे आज मजार पे चढ़ा आऊंगा,कौन जाने कब खुदा भी रूठ गया।
ये लेन-देन के रिश्ते,रिवायतें,तिजारतें,हमने खुदा को भी शरीक बना लिया।
न कहा करो मुझे नेक इंसान बार-बार,जेब खाली, नेकी सुन-सुनके मैं थक गया।

©purvarth #ज़िन्दगी_तो_खुद_एक_दिन
मैं बड़ा आदमी बनते-बनते रह गया,,जिस दिन मैं बेईमानी से मुकर गया।
सिखा रहे थे लोग बुलंदी रईशी की,,मैं नादां पहली सीढ़ी से उतर गया।
नजीर पेश कर रहा था वो मुझे ऐसे,कि खून पिया, हलक से उतर गया।
न कह सका वो मुझे दिल की बात,कई बार दरवाजे पे आकर चला गया।
कौन जाने खुदा आसमानों पे कहां होगा,मुझे अक्सर अपनी गली में दिख गया।
कमजोर समझने की गफलत न करो,गर मैं आड़े वक्त थोड़ा सा झुक गया।
यहां दर-दर सर-ए-राह शिकारी बैठे हैं,मैं दरिंदों से बचके, तरक्की कर गया।
कुछ पैसे आज मजार पे चढ़ा आऊंगा,कौन जाने कब खुदा भी रूठ गया।
ये लेन-देन के रिश्ते,रिवायतें,तिजारतें,हमने खुदा को भी शरीक बना लिया।
न कहा करो मुझे नेक इंसान बार-बार,जेब खाली, नेकी सुन-सुनके मैं थक गया।

©purvarth #ज़िन्दगी_तो_खुद_एक_दिन