हमारे घर घर......... मनुष्य की जिंदगी में तीन प्रकार के घर होते हैं - भौतिक घर, दिल का घर और दिमाग का घर...... बचपन में सिर्फ भौतिक घर होते हैं जिसमें हम रहते हैं, खेलते हैं, सीखते हैं और जैसे जैसे हम बड़े होने लगते हैं दिल में घर बनने लगता है और बड़े होते हैं तो दिमाग में घर बनने लगता है........ दिमाग के घर में वही रहता है जो स्थायी होता है चाहे विचार हो या लोग हो या कल्पना या ज्ञान हमेशा हमें दिमाग के घर को ही बनाने के बारे में सोचना चाहिए जितना भरा हुआ ये घर होगा उतना ही हम जिंदगी में आगे जाएंगे और बाकी के घर भी बनते जाएंगे ........ दिल के घर में तो लोग आते जाते रहते हैं, दिल में रहने वाले लोगों की कई बार पहचान भी नहीं हो पाती, हम धोखा भी खाते रहते हैं| दिल के घर बहुत बड़े होते हैं, बहुत लोग रहते हैं इसमे कोई करीब रहता है, कोई दूर रहता है, दिल के घर को हमेशा नहीं भरना चाहिए, बहुत दुख देते हैं यहाँ लोग, दिल में सभी लोगों को जगह देने वाले निःस्वार्थ होते है जो उनसे बहुत उम्मीद रखते हैं और अक्सर दुखी हो जाते हैं, स्वार्थी लोग तो दिल के घर में बहुत खास लोगों को ही जगह देते हैं, बाकी को तो घर में रखने का ढोंग करते हैं, पीछे के दरवाजे से निकाल देते हैं और खुश रहते हैं अक्सर ये लोग........ भौतिक घर तो अस्थायी हैं जिसमें किसी का आना जाना दिल और दिमाग से ही नियंत्रित होता है.....