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देख रही हूँ राह पिया की, रहते वह परदेश । भेज रही ह

देख रही हूँ राह पिया की,
रहते वह परदेश ।
भेज रही हूँ नेह उन्हीं को,
लिखकर मैं संदेश १ ।।

बिन पानी के सूखी फसले,
करती बस अरदास ।
तुम ही बोलों गिरधर कुछ तो
टूटी मन की आस २ ।।

मैं विपदा की मारी नारी,
क्या मेरा संसार ।
जिनसे रिश्ता जन्म जन्म का
करें प्रीत व्यापार ३ ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR देख रही हूँ राह पिया की,
रहते वह परदेश ।
भेज रही हूँ नेह उन्हीं को,
लिखकर मैं संदेश १ ।।

बिन पानी के सूखी फसले,
करती बस अरदास ।
तुम ही बोलों गिरधर कुछ तो
देख रही हूँ राह पिया की,
रहते वह परदेश ।
भेज रही हूँ नेह उन्हीं को,
लिखकर मैं संदेश १ ।।

बिन पानी के सूखी फसले,
करती बस अरदास ।
तुम ही बोलों गिरधर कुछ तो
टूटी मन की आस २ ।।

मैं विपदा की मारी नारी,
क्या मेरा संसार ।
जिनसे रिश्ता जन्म जन्म का
करें प्रीत व्यापार ३ ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR देख रही हूँ राह पिया की,
रहते वह परदेश ।
भेज रही हूँ नेह उन्हीं को,
लिखकर मैं संदेश १ ।।

बिन पानी के सूखी फसले,
करती बस अरदास ।
तुम ही बोलों गिरधर कुछ तो