कदम रक्खा था जब इश्क़ के दहलीज़ पर मैने, खोगया था, अपने ही घर के दहलीज़ पर मैने! किसी ने आकर मुझेसे पूछा पता मेरे ही घर का, मै होश में नथा,नथा पता मुझको मेरे ही घर का! खो गयी थी वो भी आकर दहलीज़ पर अपने, इज़हार-ए-इश्क़ किया था शरेआम जब उसने! #कदम रक्खा था जब इश्क़ के #दहलीज़ पर मैने, #खोगया था, अपने ही #घर के दहलीज़ पर मैने! किसी ने आकर मुझेसे #पूछा #पता मेरे ही घर का, #मै_होश_में_नथा,नथा पता मुझको मेरे ही घर का! #खो_गयी_थी_वो भी आकर दहलीज़ पर अपने, #इज़हार_ए_इश्क़ किया था #शरेआम जब उसने!