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कभी-कभी ,इंसान इस भीङ में भी, खुद को अकेला पाता है

कभी-कभी
,इंसान इस भीङ में भी, खुद को अकेला पाता है । 
शोहरत,पैसा और अनजाने लोगों में, 
अपना सिर्फ एक, साथी चाहता है ।
जिससे कह सके ,खुल कर अपनी बात,
हँस सके,उसके साथ,बिना बात ।
पर दिल की बातें ,इस शोर में, 
किसी से बाँट नहीं  पाता ।
कुछ पाने की ,तलाश में, बहुत कुछ ,
छोङता जाता है,आकाश की ,
तलाश में ,जमीन छोङता चला जाता है ।   
क्या ढूँढते ढूँढते ,क्या खो देता है,
क्या पाते पाते ,क्या खो देता है,
जान नहीं पाताहै,इक पहचान ,
बनाने के लिऐ,अपना अस्तित्व खो देता है ।

©purvarth #अस्तित्व
कभी-कभी
,इंसान इस भीङ में भी, खुद को अकेला पाता है । 
शोहरत,पैसा और अनजाने लोगों में, 
अपना सिर्फ एक, साथी चाहता है ।
जिससे कह सके ,खुल कर अपनी बात,
हँस सके,उसके साथ,बिना बात ।
पर दिल की बातें ,इस शोर में, 
किसी से बाँट नहीं  पाता ।
कुछ पाने की ,तलाश में, बहुत कुछ ,
छोङता जाता है,आकाश की ,
तलाश में ,जमीन छोङता चला जाता है ।   
क्या ढूँढते ढूँढते ,क्या खो देता है,
क्या पाते पाते ,क्या खो देता है,
जान नहीं पाताहै,इक पहचान ,
बनाने के लिऐ,अपना अस्तित्व खो देता है ।

©purvarth #अस्तित्व