White हवाएँ तेज़ थीं ये तो फ़क़त बहाने थे सफ़ीने यूँ भी किनारे पे कब लगाने थे ख़याल आता है रह रह के लौट जाने का सफ़र से पहले हमें अपने घर जलाने थे गुमान था कि समझ लेंगे मौसमों का मिज़ाज खुली जो आँख तो ज़द पे सभी ठिकाने थे हमें भी आज ही करना था इंतिज़ार उस का उसे भी आज ही सब वादे भूल जाने थे चलन था सब के ग़मों में शरीक रहने का अजीब दिन थे अजब सर-फिरे ज़माने थे ©dilkibaatwithamit हवाएँ तेज़ थीं ये तो फ़क़त बहाने थे सफ़ीने यूँ भी किनारे पे कब लगाने थे ख़याल आता है रह रह के लौट जाने का सफ़र से पहले हमें अपने घर जलाने थे गुमान था कि समझ लेंगे मौसमों का मिज़ाज खुली जो आँख तो ज़द पे सभी ठिकाने थे