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कविवार यह चाँदनी आई है मधुमास से धुलकर कुछ तेरी य

कविवार

यह चाँदनी आई है मधुमास से धुलकर
कुछ तेरी याद से धुलकर, कुछ मेरी प्यास से धुलकर।

सांध्यगीत की ध्वनि सप्तम  देकर गई थी जो निमंत्रण
उसी ध्वनि के संगीतमय  विन्यास से धुलकर
यह चाँदनी आई है मधुमास से धुलकर।

एक मदिर आसव से भींगी-सी थी तेरी केशों की छाया
उस प्रतिच्छाया के मनहर  सुवास से धुलकर
यह चाँदनी आई है मधुमास से धुलकर।

बोलो, न बोलो इस पवन में तेरे श्वासों की  लय है गूँथी
उसी लय से आती-जाती तेरी साँस से धुलकर
यह चाँदनी आई है मधुमास से धुलकर।

इस दृश्य नभ के पार  करुणा का एक संसार है पलता
उसी संसार के कुछ क्षीण आभास से धुलकर
यह चाँदनी आई है मधुमास से धुलकर।

©Ashish Kumar Verma कविवार
कविवार

यह चाँदनी आई है मधुमास से धुलकर
कुछ तेरी याद से धुलकर, कुछ मेरी प्यास से धुलकर।

सांध्यगीत की ध्वनि सप्तम  देकर गई थी जो निमंत्रण
उसी ध्वनि के संगीतमय  विन्यास से धुलकर
यह चाँदनी आई है मधुमास से धुलकर।

एक मदिर आसव से भींगी-सी थी तेरी केशों की छाया
उस प्रतिच्छाया के मनहर  सुवास से धुलकर
यह चाँदनी आई है मधुमास से धुलकर।

बोलो, न बोलो इस पवन में तेरे श्वासों की  लय है गूँथी
उसी लय से आती-जाती तेरी साँस से धुलकर
यह चाँदनी आई है मधुमास से धुलकर।

इस दृश्य नभ के पार  करुणा का एक संसार है पलता
उसी संसार के कुछ क्षीण आभास से धुलकर
यह चाँदनी आई है मधुमास से धुलकर।

©Ashish Kumar Verma कविवार

कविवार