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प्रथम आप सभी प्रबुद्ध रचनाकारों के चरणों में वंदन

प्रथम आप सभी प्रबुद्ध रचनाकारों के चरणों में वंदन करता हूं.🙇‍♂️🙇‍♂️🙏इस लेख के माध्यम से इस ऐप पर विविध रचनाकारों की अनमोल रचनाओं को पढ़ते हुये आज बरबस ही दो पंक्तियों की एक रचना पर नज़र पड़ी..और उस रचना को पढ़कर जिन  भावों का मेरे अंतर में प्राकट्य हुया उन्हें जस के तस आपके समक्ष प्रगट करता हूं, रचना के संदर्भ में ही यह सारा लेख लिखता हूं, कहां तक लिख पाउँगा नही जानता कितना लिख पाउँगा नही जानता मगर जब तक लिखूंगा नही तब तक हृदय अशांत रहेगा और एक बात जिनकी रचना के बारे में आगे कहूंगा बिलकुल निष्पक्ष ढंग से कहूंगा।
कृपया शेष भाग कैप्शन में पढ़कर कृतार्थ करें 
🙏🙏🙏🙏🙏

©Adv. R. Kumar रचना इस पेज के शीर्ष भाग पर अंकित है जो एक विदुषी महिला रचनाकार ने गढ़ी है, और अपनी इस रचना के माध्यम से मानो स्त्री पक्ष की ओर से पुरुष पक्ष पर कटाक्ष विधा का अवलम्ब लेकर उन्होंने एक काल्पनिक पुरुषभाव का सम्बोधन लिया और एक तीव्र व्यंग्यात्मक शैली को बड़े ही कलात्मक ढंग से उक्त रचना के सौंदर्य से ऐसा श्रृंगार किया कि यह रचना जो एक बार समझ ले वो प्रशंसा किये बिना रह नही सकता, रचना दो पंक्तियों में कुल चार पदों में पूर्ण हो जाती है..अब एक पाठक होने के नाते मैंने इस रचना को कितना समझा, आपके समक्ष रखने से पूर्व मैंने रचना को चार पदों में विभक्त कर रखा है और अपनी बुद्धि अनुसार सम्भावित आशय लिखा है जो कुछ इस प्रकार हैं-


1-"मनभेदों का हल खोजेंगे.." 
===================
(संभावित आशय)-रचना की पहली अर्धाली में मानो रचना कहना चाहती हो कि - सुनो हे पुरुष.. हम दोनों विपरीत "मन" वाले हैं ना.., शायद हम एक दूसरे के "मन" को ठीक से समझ ही नही पाये तो चलो, हमारे मनों में जो भेद वृत्ति है, वो क्यूँ है..?हम दोनों इसका पता लगाते हैं...!
प्रथम आप सभी प्रबुद्ध रचनाकारों के चरणों में वंदन करता हूं.🙇‍♂️🙇‍♂️🙏इस लेख के माध्यम से इस ऐप पर विविध रचनाकारों की अनमोल रचनाओं को पढ़ते हुये आज बरबस ही दो पंक्तियों की एक रचना पर नज़र पड़ी..और उस रचना को पढ़कर जिन  भावों का मेरे अंतर में प्राकट्य हुया उन्हें जस के तस आपके समक्ष प्रगट करता हूं, रचना के संदर्भ में ही यह सारा लेख लिखता हूं, कहां तक लिख पाउँगा नही जानता कितना लिख पाउँगा नही जानता मगर जब तक लिखूंगा नही तब तक हृदय अशांत रहेगा और एक बात जिनकी रचना के बारे में आगे कहूंगा बिलकुल निष्पक्ष ढंग से कहूंगा।
कृपया शेष भाग कैप्शन में पढ़कर कृतार्थ करें 
🙏🙏🙏🙏🙏

©Adv. R. Kumar रचना इस पेज के शीर्ष भाग पर अंकित है जो एक विदुषी महिला रचनाकार ने गढ़ी है, और अपनी इस रचना के माध्यम से मानो स्त्री पक्ष की ओर से पुरुष पक्ष पर कटाक्ष विधा का अवलम्ब लेकर उन्होंने एक काल्पनिक पुरुषभाव का सम्बोधन लिया और एक तीव्र व्यंग्यात्मक शैली को बड़े ही कलात्मक ढंग से उक्त रचना के सौंदर्य से ऐसा श्रृंगार किया कि यह रचना जो एक बार समझ ले वो प्रशंसा किये बिना रह नही सकता, रचना दो पंक्तियों में कुल चार पदों में पूर्ण हो जाती है..अब एक पाठक होने के नाते मैंने इस रचना को कितना समझा, आपके समक्ष रखने से पूर्व मैंने रचना को चार पदों में विभक्त कर रखा है और अपनी बुद्धि अनुसार सम्भावित आशय लिखा है जो कुछ इस प्रकार हैं-


1-"मनभेदों का हल खोजेंगे.." 
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(संभावित आशय)-रचना की पहली अर्धाली में मानो रचना कहना चाहती हो कि - सुनो हे पुरुष.. हम दोनों विपरीत "मन" वाले हैं ना.., शायद हम एक दूसरे के "मन" को ठीक से समझ ही नही पाये तो चलो, हमारे मनों में जो भेद वृत्ति है, वो क्यूँ है..?हम दोनों इसका पता लगाते हैं...!

रचना इस पेज के शीर्ष भाग पर अंकित है जो एक विदुषी महिला रचनाकार ने गढ़ी है, और अपनी इस रचना के माध्यम से मानो स्त्री पक्ष की ओर से पुरुष पक्ष पर कटाक्ष विधा का अवलम्ब लेकर उन्होंने एक काल्पनिक पुरुषभाव का सम्बोधन लिया और एक तीव्र व्यंग्यात्मक शैली को बड़े ही कलात्मक ढंग से उक्त रचना के सौंदर्य से ऐसा श्रृंगार किया कि यह रचना जो एक बार समझ ले वो प्रशंसा किये बिना रह नही सकता, रचना दो पंक्तियों में कुल चार पदों में पूर्ण हो जाती है..अब एक पाठक होने के नाते मैंने इस रचना को कितना समझा, आपके समक्ष रखने से पूर्व मैंने रचना को चार पदों में विभक्त कर रखा है और अपनी बुद्धि अनुसार सम्भावित आशय लिखा है जो कुछ इस प्रकार हैं- 1-"मनभेदों का हल खोजेंगे.." =================== (संभावित आशय)-रचना की पहली अर्धाली में मानो रचना कहना चाहती हो कि - सुनो हे पुरुष.. हम दोनों विपरीत "मन" वाले हैं ना.., शायद हम एक दूसरे के "मन" को ठीक से समझ ही नही पाये तो चलो, हमारे मनों में जो भेद वृत्ति है, वो क्यूँ है..?हम दोनों इसका पता लगाते हैं...! #विचार