हर आवाज़ को वो दबाना चाहते है कुछ तो है जो छिपाना चाहते है आवाम के लाशो की जरूरत है उन्हें उसी से शाह-ए-तख्त बनाना चाहते है जहाँ भी लगा हो इस मुल्क में आग वो घी का फर्ज़ निभाना चाहते है क्या ख़ूब तमाशा है हम उनके लिए हम लड़ रहे और वो लड़ाना चाहते है -(क्षत्रियंकेश) शाह-ए-तख्त!