है पथ ये विशाल सा, मृत्यु के कपाल सा, जिंदगी की आंधी में, काल की समाधि में, रौब कौन है झाड़ता, ऐब किसमे चल बता, दोपहर की आंधी है, बाण जिसने साधी है, काल के कपाल को, तू क्यों नही पहचानता,। अरे!धर्म सी है नाक तेरी, और ज्ञान की आंख फेरी, कुछ मस्तिष्क का प्रयोग कर , दो हाँथ से सहयोग कर, जिंदगी की बाँह में, जुनून की आह में, चल कुछ कर चलें, अपनी ज़िंदगी से लड़ चलें, नाहीं तो कौन है खुशियां ताड़ता, काल ही सबको मारता!! -Anand Mishra काल ही सबको मारता🙏🙏