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इल्जाम न आया उन हाथों को उन कर्कश आवाजों को विश्वा

इल्जाम न आया
उन हाथों को
उन कर्कश आवाजों को
विश्वास जीतकर रची 
उन साजिशों को 
इल्जाम न आया
उस रस्सी,उस पंखे को
मरता नहीं कोई खुद से
दुनिया का वो शख्स मार देता है
मुख से निकले अंगारों से
सांसों की हर सिसकते उन आहों को 
आंखों से बहते उन अश्कों को...✍️

©Preeti jaiswal(Vijjy)
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