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सालों बाद आज दर्पण से सामना हो गया यूँ लगा किसी अ

सालों बाद आज दर्पण से सामना हो गया 
यूँ लगा किसी अपरिचित को थामना हो गया 
दर्पण बोला बहुत देर हो गयी तू तो कब की खो गयी 
ठिठक कर कुछ देर के लिए मैं जड़वत सी हो गयी 
मेरे स्वाभिमान पर जैसे चोट सी हो गयी 
मैं थी मैं हूँ वाली आखिर कहाँ सो गयी 
झुर्रियां झाइयाँ,आँखों के काले घेरे 
तन की खूबसूरती भी अब आँख फेरे 
जाने कहाँ किसके लिए खो गयीं
मेरी सुकून भरी रातें और सुहाने सवेरे 
द्वन्द भीषण चला बोला अंतर्मन मेरा 
सुन अभी भी है समय तेरा
जहाँ आँख खुले है वहीँ सवेरा 
रिश्ते नहीं मंजिल न बना उन्हें बसेरा 
वो तो हैं ताउम्र का सफऱ 
जिस पर है हर रोज चलना
किन्तु न रोक खुद की डगर 
अब फिर कर तलाश उसकी 
सालों पहले मुरीद थी तू जिसकी 
ढूंढ़ दुबारा वो वजहें 
जिससे था तुझे 
खुद से भी प्यार बेशुमार 
पहले अब उसे संवार 
मैं उठी एक नये जोश के साथ 
थामा खुद से खुद का हाथ 
मेरा अंतर्मन मुस्कराकर 
फिर से उम्मीदों के नये बीज बो गया 
"""मैं बोली,हाँ मुझे खुद से प्यार हो गया"""""

        सारिका जोशी नौटियाल"सारा "

©Sarika Joshi Nautiyal
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