ग़ज़ल आओ इस धरा पर न्युनतम बीज लगाते चलो। अनुपम अवनि को हरा भरा खुशहाल बनाते चलो ।। खोखली हो रही है आज रिश्तों की बुनियाद। प्यार की छोटी सी परिभाषा सबको सिखाते चलो।। बिकती नहीं शिष्टाचार कहीं किसी कीमत पर। संस्कार की नन्ही सी बीज पालने में पनपाते चलो ।। ज़िन्दगी की सुन्दरता मुस्कान से निखरती है। हँसने हँसाने की न्यूनतम मुल्य सबको बताते चलो।। वक्त होता नहीं कभी किसी का अपना। थोड़ी सी जगह औरों के दिलों में "अम्बे" बसाते चलो।। अम्बिका मल्लिक ✍️ ©Ambika Mallik #न्युनतम