ख्वाहिशों के समंदर में, जिम्मेदारी की कस्ती चला रहा हूं, मंज़र-ए-बर्बादी में बस्ती बसा रहा हूं! मुआफ कर सकूं उनके हर ज़ुल्म-ओ-सितम, खुद को ऐसी हस्ती बना रहा हूं! मिल सकें सबको प्यार अपना-अपना, ऐसी मोहब्बत सस्ती बना रहा हूं! बेवफ़ाओ को भी मिले सजा इश्क में, कानून उनके लिए सख्ती बना रहा हूं! ज़ख्म-दर्द, ग़म-अश्क सब कुछ हैं, फिर भी ज़माने को हंस के तंदुरुस्ती दिखा रहा हूं! जिंदगी तो कब से खफ़ा हैं मुझसे, खुदगर्ज हूं जो सांसें जबरदस्ती चला रहा हूं! #Hasti_Bana_Raha_Hoo