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मेरे सामने ही मेरी अहमियत को मिटाने की जद्दोजहद कर

मेरे सामने ही मेरी अहमियत को मिटाने की जद्दोजहद कर रहा है।
बढते हुए मेरे क़द और क़दम को घटाने की जद्दोजहद कर रहा है।

वो मिलता गर्मजोशी से सबसे है पर मुझी को सदा नज़रंदाज़ करता,
वो आता नहीं सामने मेरे आँखें चुराने की जद्दोजहद कर रहा है।

वो ऐसे दिखाता है जैसे कि मौजूद होकर भी मौजूद हूँ ही नहीं मैं,
है नाराज़ मुझसे निहायत वो ऐसा जताने की जद्दोजहद कर रहा है।

लहज़े  में  नरमी  है मीठी  है बोली  मगर  बातें  दोधारी  तलवार जैसी,
शातिर है वह शख्स और आदतन वह सताने की जद्दोजहद कर रहा है।

पढ़ता कसीदे है उनके लिए जो हुनरमंद थोड़ा क्या कुछ भी नहीं है,
वो नाहक ही पाले है दिल में अगन और जलाने की जद्दोजहद कर रहा है।

बैठा है वह खार खाकर कभी से कि अंदाज़ उसके बयाँ सब हैं करते,
वो बेजा तरीके से दुनिया के आगे झुकाने की जद्दोजहद कर रहा है।

मेरी बात मानो भुला कर ये नफ़रत चलो साथ दोनों ही मंज़िल की जानिब,
क्यों ज़िद पर अड़ा दाँव चलते हुए तू हराने की जद्दोजहद कर रहा है।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©Ripudaman Jha Pinaki #जद्दोजहद
मेरे सामने ही मेरी अहमियत को मिटाने की जद्दोजहद कर रहा है।
बढते हुए मेरे क़द और क़दम को घटाने की जद्दोजहद कर रहा है।

वो मिलता गर्मजोशी से सबसे है पर मुझी को सदा नज़रंदाज़ करता,
वो आता नहीं सामने मेरे आँखें चुराने की जद्दोजहद कर रहा है।

वो ऐसे दिखाता है जैसे कि मौजूद होकर भी मौजूद हूँ ही नहीं मैं,
है नाराज़ मुझसे निहायत वो ऐसा जताने की जद्दोजहद कर रहा है।

लहज़े  में  नरमी  है मीठी  है बोली  मगर  बातें  दोधारी  तलवार जैसी,
शातिर है वह शख्स और आदतन वह सताने की जद्दोजहद कर रहा है।

पढ़ता कसीदे है उनके लिए जो हुनरमंद थोड़ा क्या कुछ भी नहीं है,
वो नाहक ही पाले है दिल में अगन और जलाने की जद्दोजहद कर रहा है।

बैठा है वह खार खाकर कभी से कि अंदाज़ उसके बयाँ सब हैं करते,
वो बेजा तरीके से दुनिया के आगे झुकाने की जद्दोजहद कर रहा है।

मेरी बात मानो भुला कर ये नफ़रत चलो साथ दोनों ही मंज़िल की जानिब,
क्यों ज़िद पर अड़ा दाँव चलते हुए तू हराने की जद्दोजहद कर रहा है।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©Ripudaman Jha Pinaki #जद्दोजहद