सिहरी हैं शाम ओ सहर इस तरह , यूं फजा में फैला है जहर इस तरह । किश्तियों ने मांग ली लहरों से पनाह, किनारे पे मिला एक भंवर इस तरह। जब रूठा तो वो रूठा किस कदर, अब गले मिला तो मिला बेसबब इस तरह। जब भी भीगा मैं, मिले दामन के साए , बन हमसफ़र मेरा, वो रहा इस तरह । खाकसारी को बुना है हाथों की लकीरों में, सो मंजिल में भी मिला है सफर इस तरह । हंसते हुए निकला और ग़म सुना बैठा, राह में मिला वो बशर इस तरह । चांदी बालों में और आंखो में रातों के साए, आइना दिखाता है बीते बरस इस तरह। मै फिक्रमंद हूं कहीं,नींद ना गुजर जाए सिरहाने से, कई रोज ख़्वाब में गुजरे कुछ मंजर इस तरह। बशर - human being #raat #shayri #jindagi