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संकुचित है सोंच तेरी मानता तू क्यों नहीं? सुप्त सब

संकुचित है सोंच तेरी मानता तू क्यों नहीं?
सुप्त सब इन्द्रियाँ तेरी जागता तू क्यों नहीं?
आ रही अवसान वेला ज़िंदगी के दिवस की।
मोह-लोभ के बंधनों को तोड़ता तू क्यों नहीं?

©HINDI SAHITYA SAGAR
  #BudhhaPurnima 
संकुचित है सोंच तेरी मानता तू क्यों नहीं?
सुप्त सब इन्द्रियाँ तेरी जागता तू क्यों नहीं?
आ रही अवसान वेला ज़िंदगी के दिवस की।
मोह-लोभ के बंधनों को तोड़ता तू क्यों नहीं?
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#BudhhaPurnima संकुचित है सोंच तेरी मानता तू क्यों नहीं? सुप्त सब इन्द्रियाँ तेरी जागता तू क्यों नहीं? आ रही अवसान वेला ज़िंदगी के दिवस की। मोह-लोभ के बंधनों को तोड़ता तू क्यों नहीं? #Hindi #hindi_poetry #hindisahityasagar #Nozoto #nozotohindi #कविता

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