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मैं अस्सी वो दस में था, खेल हमारे बस में था, पलट ग

मैं अस्सी वो दस में था,
खेल हमारे बस में था,
पलट गई फिर बाजी सारी,
मैं पैदल वो बस में था।
पहले आई मेरी बारी,
मैंने अपनी बाजी मारी,
पर जब उसने दांव चला तो,
खेल खेलना पड़ गया भारी।
दिखी हकीकत उसकी यारों,
ज़हर भरा नस नस में था,
पलट गई फिर बाजी सारी,
मैं पैदल वो बस में था।
मतलब का संसार मिला था,
मगर न मुझको प्यार मिला था,
जज्बातों से खूब खेलता,
जो भी मेरा यार मिला था,
गुठली का कोई काम नहीं था,
मज़ा तो उसको रस में था,
पलट गई फिर बाजी सारी,
मैं पैदल वो बस में था।

©Ashish Tripathi "kumar"
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