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हरण या दान
थोड़ी अटपटी लग सकती है रचना। किसी की भावना को ठेस पहुंचे ऐसा मेरा मंतव्य नहीं। क्षमा करें।
अलग-अलग लोगों से मिल हम अलग होते जाते हैं। नई-नई चीजें सीखते, समझते और अनुभव करते हैं। इसका प्रभाव हमारी सोच, नजरिये और प्रतिक्रिया में दिखाई देने लगता है। वो कहते हैं, ना जाने क्या पुण्य किया जो तुम मिले।
यदि नाराज हुए तो, वहीं पाप कर्म याद आने लगते हैं।
लेखा जोखा रखें या नहीं, क्या पता। #a_journey_of_thoughts#shreekibaat_AJOT