Nojoto: Largest Storytelling Platform

तारीख बदलती रही दिन बीतते रहे और बीत रहा था ये स

तारीख बदलती रही
दिन बीतते रहे 
और बीत रहा था 
ये सूरज  और चाँद भी
पता ही नहीं चला कभी
ये वक़्त कैसे बीत रहा
कमजोर होते कंधे
और कमजोर होती नजर
बूढ़ा बना रही मुझे
और बढ़ा रही थी ज़िन्दगी की मुश्किलें.
ये वक्त जो बेहिसाब बिताया मैंने
अपनो के साथ 
ये मुझे मेरे अपनो से 
मेरे हिस्से का वक़्त क्यों नहीं मांगता
जो मैंने लुटा दिया था उन पर
उनकी जरूरतों के लिए
जिनकी नन्ही उँगलियाँ पकड कर
स्कूल तक छोड़ा मैंने
आज वे क्यों मेरा हाथ थाम कर
सड़क भी पार नहीं करवाना चाहते.
ये वक़्त उन्हें 
सबक नहीं सीखा सकता
जो ज़िन्दगी का सबक भूल गए
जो मुझ बूढ़े से उसकी लाठी छीन गए
जो मेरी आँखों के तारे थे
वो क्यों मेरी आँखों की रौशनी छीन गए
क्या उन्हें पाल कर गुनाह किया था मैंने
क्या वो ये गुनाह नहीं करेंगे
ये वक़्त उन्हें भी सबक सीखाएगा
ये वक़्त उन्हें भी बूढ़ा बनाएगा--अभिषेक राजहंस शीर्षक-ये वक़्त सबक सीखाएगा 
तारीख बदलती रही
दिन बीतते रहे 
और बीत रहा था 
ये सूरज और चाँद भी
पता ही नहीं चला कभी
ये वक़्त कैसे बीत रहा
कमजोर होते कंधे
तारीख बदलती रही
दिन बीतते रहे 
और बीत रहा था 
ये सूरज  और चाँद भी
पता ही नहीं चला कभी
ये वक़्त कैसे बीत रहा
कमजोर होते कंधे
और कमजोर होती नजर
बूढ़ा बना रही मुझे
और बढ़ा रही थी ज़िन्दगी की मुश्किलें.
ये वक्त जो बेहिसाब बिताया मैंने
अपनो के साथ 
ये मुझे मेरे अपनो से 
मेरे हिस्से का वक़्त क्यों नहीं मांगता
जो मैंने लुटा दिया था उन पर
उनकी जरूरतों के लिए
जिनकी नन्ही उँगलियाँ पकड कर
स्कूल तक छोड़ा मैंने
आज वे क्यों मेरा हाथ थाम कर
सड़क भी पार नहीं करवाना चाहते.
ये वक़्त उन्हें 
सबक नहीं सीखा सकता
जो ज़िन्दगी का सबक भूल गए
जो मुझ बूढ़े से उसकी लाठी छीन गए
जो मेरी आँखों के तारे थे
वो क्यों मेरी आँखों की रौशनी छीन गए
क्या उन्हें पाल कर गुनाह किया था मैंने
क्या वो ये गुनाह नहीं करेंगे
ये वक़्त उन्हें भी सबक सीखाएगा
ये वक़्त उन्हें भी बूढ़ा बनाएगा--अभिषेक राजहंस शीर्षक-ये वक़्त सबक सीखाएगा 
तारीख बदलती रही
दिन बीतते रहे 
और बीत रहा था 
ये सूरज और चाँद भी
पता ही नहीं चला कभी
ये वक़्त कैसे बीत रहा
कमजोर होते कंधे