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ऐ ख़ामोश बहती झील , मैं फिर आऊंगा तुमसे मिलने ,

 ऐ ख़ामोश बहती झील ,
 मैं फिर आऊंगा तुमसे मिलने , फिर
 जब हंस के थक चुका हूंगा , जब आंख भर रही होगी 
जब मेरे  ख़्वाब के घर की, कोई दीवार  गिर  रही होगी ।

जब खुद को बहला पाऊंगा न, झूठे  किसी  बहाने  से
फिर  मान   ही   लूंगा   वो  सारी  बात  जो  सही  होगी ।

जब  इन  तमाम  लोगों  में  ये दिल न लग रहा होगा 
जब   जाने  क्या    पाने   को   तमन्ना मचल रही होगी  ।

मैं  आऊंगा  तुमसे  बांटने  खामोशी  तुम्हारी 
तुम  उतार  लेना  बोझ  पलकों   का   मेरी.......

-हृषिकेश शुक्ला 'ऋषि'

©Hrishikesh Shukla
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