कलम चल रही है कुछ गलत कुछ सही लिख रहा हूँ भटकी सी लग रही है सोच और कलम कभी बनारस तो कभी संगम लिख रहा हूँ क्या लिखूं पता नही फिलहाल अस्सी पर हो रहे प्यार लिखूँ या हरिश्चंद्र घाट पर आ रहे मुर्दों की बारात सोचता हूँ लिखूँ इंकलाब या औरतो पर हो रहे अत्याचार या लिख दूँ गरीबों के चिल्लाहट को या भुखे की पेट की आवाज लिखूं पर भरोसा नही होगा कुछ बदलाव पता नही क्या लिखूं फिलहाल भटकती है कलम बार बार "नितेश सिंह यादव " भटकती सोच