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// निराशा के कांँटे // अजीब किस्सा है ज़िन्दगी क

// निराशा के कांँटे //

अजीब  किस्सा है ज़िन्दगी का कब किस पल क्या हो जाए,
कभी सुख की है बरसात तो कभी दुःख के बादल छा जाए,
कभी एक आशा बढ़-चढ़कर जिंदगी के रास्ते खोल देती है,
तो कभी बिखरी उम्मीद पल-पल निराशा के कांटे चुभाती है,

खट्टी मीठी सी जिंदगी कभी जमीं तो कभी आसमान होती है,
कभी देती मखमली सी राहें तो कभी दर्द का जाल बिछाती है,
ज़रूरी तो नहीं हर दिन खुशियों का जाम ही पिलाए ज़िन्दगी,
कभी-कभी ग़म देकर वो उदासी के कड़वे  घूंट भी पिलाती है,

माना निराशा के कांँटे ज़ख्म देकर  जीवन नासूर कर देते हैं,
पर समझदार वही जो वक्त़ पे इन कांँटों को निकाल लेते हैं,
निराशा पल पल ज़िन्दग़ी को घोर अंँधकार में धकेल देती है,
और निराशावादी होकर  कोई जंग जीती नहीं  जा सकती है,

असफलताओं के आने से ये ज़िंदगी ख़त्म तो नहीं हो जाती,
निराश होकर बैठ जाने से कोई समस्या ख़त्म नहीं हो जाती,
इसलिए निराशा छोड़कर आशावादी बनो निरंतर  कर्म करो,
ख्वाब टूट भी जाए तो क्या ख़ुद के हौसले पर  विश्वास रखो।

©Mili Saha
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