आजकल मुलाकाते भी नही होती, जो होती है खॉबमे , वो भी पुरी नही होती ना नींद, ना जाग बस, एक बुझी हुयी आग ,इस आग की राख भी नही होती, जिसे हम लगाये तनपर और बन जाये जोगन ऐसी कोयी मुराद भी यादोंकि गर्दीशमे आजकल पुरी नही होती पल्लवी फडणीस,भोर✍