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बंधक है आज जो बचपन तेरा कांच की दीवारों में आंखों

बंधक है आज
जो बचपन तेरा
कांच की दीवारों में
आंखों में उमड़ती
जो दर्द की लहरें
पलकों में भींच
उसे अंगार बना
मुठ्ठी में बांध के रख
हौसलों की लकीरें
एक रोज जोर लगा
प्रहार कर
कांच की कौन कहे
लोहे की दीवारें भी
चूर हो जाएंगी
बेड़ियां भी टूट कर
झनकार कर
आजादी गीत गाएंगी।

©alka mishra
  #कैद
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