कुण्डलिया :- अपना अपना कर रहे , अब अपने ही लोग । जो अपनों से ही सदा , पाते थे सहयोग ।। पाते थे सहयोग , बनाते जीवन सुंदर । अब वे हैं सब लोग , काटते जड़ को अन्दर ।। हुआ न देखो पूर्ण , किसी का ऐसे सपना । व्यर्थ पालकर स्वार्थ , करे जो अपना अपना ।। ०२/०६/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :- अपना अपना कर रहे , अब अपने ही लोग । जो अपनों से ही सदा , पाते थे सहयोग ।। पाते थे सहयोग , बनाते जीवन सुंदर । अब वे हैं सब लोग , काटते जड़ को अन्दर ।। हुआ न देखो पूर्ण , किसी का ऐसे सपना । व्यर्थ पालकर स्वार्थ , करे जो अपना अपना ।।