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कुण्डलिया :- अपना अपना कर रहे , अब अपने ही लोग । ज

कुण्डलिया :-
अपना अपना कर रहे , अब अपने ही लोग ।
जो अपनों  से  ही  सदा , पाते  थे  सहयोग ।।
पाते   थे   सहयोग ,  बनाते   जीवन   सुंदर ।
अब वे हैं सब लोग , काटते जड़ को अन्दर  ।।
हुआ न  देखो  पूर्ण , किसी  का  ऐसे  सपना ।
व्यर्थ पालकर स्वार्थ , करे जो अपना अपना ।।


०२/०६/२०२३     -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :-
अपना अपना कर रहे , अब अपने ही लोग ।
जो अपनों  से  ही  सदा , पाते  थे  सहयोग ।।
पाते   थे   सहयोग ,  बनाते   जीवन   सुंदर ।
अब वे हैं सब लोग , काटते जड़ को अन्दर  ।।
हुआ न  देखो  पूर्ण , किसी  का  ऐसे  सपना ।
व्यर्थ पालकर स्वार्थ , करे जो अपना अपना ।।
कुण्डलिया :-
अपना अपना कर रहे , अब अपने ही लोग ।
जो अपनों  से  ही  सदा , पाते  थे  सहयोग ।।
पाते   थे   सहयोग ,  बनाते   जीवन   सुंदर ।
अब वे हैं सब लोग , काटते जड़ को अन्दर  ।।
हुआ न  देखो  पूर्ण , किसी  का  ऐसे  सपना ।
व्यर्थ पालकर स्वार्थ , करे जो अपना अपना ।।


०२/०६/२०२३     -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :-
अपना अपना कर रहे , अब अपने ही लोग ।
जो अपनों  से  ही  सदा , पाते  थे  सहयोग ।।
पाते   थे   सहयोग ,  बनाते   जीवन   सुंदर ।
अब वे हैं सब लोग , काटते जड़ को अन्दर  ।।
हुआ न  देखो  पूर्ण , किसी  का  ऐसे  सपना ।
व्यर्थ पालकर स्वार्थ , करे जो अपना अपना ।।

कुण्डलिया :- अपना अपना कर रहे , अब अपने ही लोग । जो अपनों से ही सदा , पाते थे सहयोग ।। पाते थे सहयोग , बनाते जीवन सुंदर । अब वे हैं सब लोग , काटते जड़ को अन्दर ।। हुआ न देखो पूर्ण , किसी का ऐसे सपना । व्यर्थ पालकर स्वार्थ , करे जो अपना अपना ।। #कविता