Nojoto: Largest Storytelling Platform

स्वातंत्र्य भाव वर्णन।। ये शीश तर्पित आज है, ये व

स्वातंत्र्य भाव वर्णन।।

ये शीश तर्पित आज है,
ये वीर वर्णित आज है।
कण कण लहु में ज्वार है,
ये काव्य छन्दित आज है।

कम्पित नहीं हुंकार है,
वाणी में भी ललकार है।
कोटि कोटि स्वजनों में,
आह्लादित ये जयकार है।

ये भाव स्तंभित आज है,
ये जग अचंभित आज है।
जो पूत तेरे बढ़ चले,
सृष्टि भी कम्पित आज है।

ये धीर अंगद पांव है,
रौद्र मन का ही ठाँव है।
हम अडिग जो हैं खड़े,
मातृ आँचल की छांव है।

वो वीर जो सरहद डटे,
हैं धूप बारीश जो खड़े।
उनको नमन पभु आज है,
जो देश ख़ातिर है लड़े।

स्वातंत्र्य वेदी है ये पावन,
है गूंजता जो मुक्त गायन।
खग विहग तरु ताल नदियां,
हैं झूमते मानो हो सावन।

स्वरचित जन भाव संचित,
दारिद्र्य-रहित, न कोई वंचित।
मुक्ति स्वर नभ में जो गूंजा,
पुनः हुआ ये प्रण स्पंदित।

ये दृष्टि लक्षित आज है,
ये सार गर्भित आज है।
ये शीश तर्पित आज है,
ये वीर वर्णित आज है।।

©रजनीश "स्वछंद" स्वातंत्र्य भाव वर्णन।।

ये शीश तर्पित आज है,
ये वीर वर्णित आज है।
कण कण लहु में ज्वार है,
ये काव्य छन्दित आज है।

कम्पित नहीं हुंकार है,
स्वातंत्र्य भाव वर्णन।।

ये शीश तर्पित आज है,
ये वीर वर्णित आज है।
कण कण लहु में ज्वार है,
ये काव्य छन्दित आज है।

कम्पित नहीं हुंकार है,
वाणी में भी ललकार है।
कोटि कोटि स्वजनों में,
आह्लादित ये जयकार है।

ये भाव स्तंभित आज है,
ये जग अचंभित आज है।
जो पूत तेरे बढ़ चले,
सृष्टि भी कम्पित आज है।

ये धीर अंगद पांव है,
रौद्र मन का ही ठाँव है।
हम अडिग जो हैं खड़े,
मातृ आँचल की छांव है।

वो वीर जो सरहद डटे,
हैं धूप बारीश जो खड़े।
उनको नमन पभु आज है,
जो देश ख़ातिर है लड़े।

स्वातंत्र्य वेदी है ये पावन,
है गूंजता जो मुक्त गायन।
खग विहग तरु ताल नदियां,
हैं झूमते मानो हो सावन।

स्वरचित जन भाव संचित,
दारिद्र्य-रहित, न कोई वंचित।
मुक्ति स्वर नभ में जो गूंजा,
पुनः हुआ ये प्रण स्पंदित।

ये दृष्टि लक्षित आज है,
ये सार गर्भित आज है।
ये शीश तर्पित आज है,
ये वीर वर्णित आज है।।

©रजनीश "स्वछंद" स्वातंत्र्य भाव वर्णन।।

ये शीश तर्पित आज है,
ये वीर वर्णित आज है।
कण कण लहु में ज्वार है,
ये काव्य छन्दित आज है।

कम्पित नहीं हुंकार है,