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वो भी क्या दिन थे, जिसकी हर सुबह । तेरे मिलने कि च

वो भी क्या दिन थे,
जिसकी हर सुबह ।
तेरे मिलने कि चाहत ,
और श्याम छोड जाणे के,
गम मे गुजर जाती थी।
मोहब्बत भी कैसी थी मेरी,
जो हर वक्त ,
बस तुझे पाने कि उम्मीद लिए,
तेरे साथ का हर पल जी लेती थी।
तू भी तो हर वक्त,
कुछ ना कुछ,
बहाणा कर मुझे याद कर लेती थी।
उसीको समज बैठा मै मोहब्बत,
नासमज समज ना पाया मै कभी।
जो बस तेरी एक आदत ,
जो बन बैठी थी।
वो भी क्या दिन थे,
जिसकी हर सुबह ।
तेरे मिलने कि चाहत ,
और श्याम छोड जाणे के,
गम मे गुजर जाती थी।
मोहब्बत भी कैसी थी मेरी,
जो हर वक्त ,
बस तुझे पाने कि उम्मीद लिए,
तेरे साथ का हर पल जी लेती थी।
तू भी तो हर वक्त,
कुछ ना कुछ,
बहाणा कर मुझे याद कर लेती थी।
उसीको समज बैठा मै मोहब्बत,
नासमज समज ना पाया मै कभी।
जो बस तेरी एक आदत ,
जो बन बैठी थी।