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करवटों का करवटों का, कुछ हाल ऐसा हो गया है-२ मैं

करवटों का

करवटों का, कुछ हाल ऐसा हो गया है-२ 
मैंने सुबह देखा, गौर से जब बेचैन सी, 
सिलवटों पर, एक छत्र राज़ इनका हो गया है।

कभी आड़ी तिरछी सिलवटों से पूछकर देखों,
                                  करवटों का, हाल भी बेहाल सा हो गया है।                                 
करवटों का, कुछ हाल ऐसा हो गया है-२ 

सुबह की चाय को देखा, भाप उडती सी.
हर गरम अरमान, इस कप में अब सो गया है।  
करवटों का, कुछ हाल ऐसा हो गया है-२ 

कभी होठों को जला देती थी, बस छूकर,
आज इंतज़ार में, तासीर भी अपनी खो गया है।  
करवटों का, कुछ हाल ऐसा हो गया है-२ 

आपका अपना दोस्त 
तनहा शायर हूँ-यश










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©Tanha Shayar hu Yash
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