Nojoto: Largest Storytelling Platform

बसती थी यादें जहाँ, सजती थी हसीं शाम..! वो गालिया

बसती थी यादें जहाँ,
सजती थी हसीं शाम..!

वो गालियाँ अब ढूंढते हैं,
हम होकर ग़ुमनाम..!

वो आवाज़ जो घोलती थी,
शहद कानों में कभी..!

ख़ामोशी की चादर ओढ़,
अब बनी हैं बेजान..!

अँधेरे में है क्यों ये जीवन हमारा,
रौशनी की राह तकता होकर नाकाम..!

मन्नत थी वो मेरी ज़न्नत ज़रूरी,
ये दूरी अब मुझको कर रही निष्प्राण..!

एहसास भी धुँधले हो गए अब यूँ,
दिलों को भेदता उसकी यादों का बाण..!

©SHIVA KANT(Shayar)
  #moonnight #yadein_teri