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कविता : रुक्मिणी का विरह न मैं मीरा बनी न ही राधा

कविता : रुक्मिणी का विरह

न मैं मीरा बनी न ही राधा बनी,
देखो बस रह गयी बनके मैं रुक्मणि।
साथ उनका रहा बस घड़ी दो घड़ी।
नाम उनका हुआ रह गयी मैं पड़ी।

आज देखो बने है सदन ही सदन,
साथ राधा ही कृष्ण के संग-संग खड़ी।
दोष मेरा था क्या ये बता दो सभी?
द्वारिका में अकेले क्यूँ पड़ी रह गयी?

©HINDI SAHITYA SAGAR
  कविता : रुक्मिणी का विरह

न मैं मीरा बनी न ही राधा बनी,
देखो बस रह गयी बनके मैं रुक्मणि।
साथ उनका रहा बस घड़ी दो घड़ी।
नाम उनका हुआ रह गयी मैं पड़ी।

आज देखो बने है सदन ही सदन,

कविता : रुक्मिणी का विरह न मैं मीरा बनी न ही राधा बनी, देखो बस रह गयी बनके मैं रुक्मणि। साथ उनका रहा बस घड़ी दो घड़ी। नाम उनका हुआ रह गयी मैं पड़ी। आज देखो बने है सदन ही सदन,

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