लिफाफे मे लिपटा एक कागज का पन्ना जो बिल्कुल कोरा था नाजाने किसने लिखा था काहाँ से आया था पर उसपर पता तो मेरा था महसूस यूं हूआ कोइ तो है, जो सच मैं खोया था कसमकश मैं था दिल मेरा सारी रात मे रोया था जवाब भेजूं केसे जाना पहचाना अजनबी जो था मेने भी भेजा आखरी खत उस गुमनाम के नाम जिनका ठिकाना मेने खोया था एक लिफाफा जिस पर पता ना हो उसपर कोइ पेगाम ना हो नगर नगर घुमते घुमते बरसों बाद वापस जो मेरे पास आया था । ©Tafizul Sambalpuri #चिठ्ठी सत्य Internet Jockey Vishalkumar "Vishal" Irfan Saeed Writer