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ग़म-ए-फुरक़त लिए हम जी रहे हैं अपने ही अश्क़ रोज़ हम प

ग़म-ए-फुरक़त लिए हम जी रहे हैं
अपने ही अश्क़ रोज़ हम पी रहे हैं

शिकायतें यूँ तो नहीं तुझसे कोई भी
लब फिर भी जाने क्यूँ हम सी रहे हैं

उम्मीद तुझसे जो आज है ताउम्र रहेगी
तेरी ही मुस्कान पर तो हम जी रहे हैं

नज़र लगी है जो रिश्ते को हमारे
हाँ इसके गुनहगार हम ही रहे हैं

साथ रहेंगे सदा कहा था उसने "प्रशान्त"
और हम ही हैं जो साथ निभाये जा रहे हैं

©Prashant Shakun "कातिब"
  #ज़िंदगी_के_किस्से  #प्रशांत_शकुन_कातिब 
1015hrs Friday 20th May, 2022