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उलझे उलझे से है अपने मांझे, टूटने को डोर बेताब सी

उलझे उलझे से है अपने मांझे, टूटने को डोर बेताब सी है ।
पढ़ा लाख दफा तुझे हरपहर ,  तू अस्पष्ट किताब सी है ।।
पन्ने पलटे , रुख भी पलटा , पलटा समय जो मेरा था ,
गड़बड़ हुई है जोड़,घटाव में, गलतियां अपनी बेहिसाब  सी है ।।

©AJAY BADETIA
  #अटूट_जो_टूट_गया