बेमौसम बरसात कबतक? अमावस की रात कबतक? दूर अपनों से मुसाफ़िर, अजनबी से बात कबतक? स्वार्थ में अंधे हुए सब, बेवज़ह की घात कबतक? रह-ए-उल्फ़त में दिलों के खेल में शह-मात कबतक? परेशाँ हर कोई जग में, दर्द से निजात कबतक? मन मुनासिब राह चल तू, सहे हृदयाघात कबतक? स्वयं की पहचान करले, व्यर्थ पश्चाताप कबतक? ज्ञान दीपक जला 'गुंजन', अंधेरे की बिसात कबतक? --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #व्यर्थ पश्चाताप कबतक#