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रात को अकेले में पौधा सोचता रहा, जिसदिन राजू जीत क

रात को अकेले में पौधा सोचता रहा, जिसदिन राजू जीत कर उसे लाया था, राजू के साथ पौधा भी खुश था कि राजू ने उसे जीता है, उस दूसरे बच्चे के पास अपना घर भी नहीं था, वह ले जाता तो कुछ दिन बाद कहीं छोड़ ही देता। पर आज उसे महसूस हो रहा था कि गमले में उपेक्षित पड़े रहने से, बिना किसी के ध्यान के कुदरत के रख-रखाव में, वह अपनी जमीन पर ही अच्छा था।
न किसी एक की राह तकता, न उपेक्षित महसूस करता।
(Read in Caption) विद्यालय में सभी बच्चों को एक काम मिला, एक पौधा बाहर से लाकर अपने घर में लगाना था। राजू ने घर आते ही माँ को बताया और बोला कि कल मैं प्ले ग्राउंड से एक पौधा ले आऊंगा। माँ ने पूछा कि लगाएंगे कहाँ? राजू रोज देखता की माँ उस चौरे का बड़ा सम्मान करती है, रोज जल देती है दिया जलाती है तो उसके लाये पौधे के लिए भी उसे वैसे ही सम्मान की इच्छा थी। अतएव उसने तुलसी चौरे की ओर इशारा किया। माँ ने समझाया कि वो तो तुलसी की जगह है, उसे विस्थापित नहीं कर सकते। 
राजू ने कहा कि मैं तुलसी ही ले आऊंगा तो माँ ने स्पष्ट किया कि घर में एक ही तुलसी का पौधा होता है जब तक वो सूख न जाये उसकी जगह दूसरा नहीं लगा सकते।
इसलिए राजू तुलसी का पौधा न लाकर कोई अन्य पौधा लाये। 

राजू को खेल के मैदान में गुलाबी सदाबहार के फूलों का एक छोटा पौधा दिखा, किन्तु दूसरे बच्चे ने भी उसे ही घर ले जाने की इच्छा जताई, किन्तु जीत राजू की हुई और राजू उसे लेकर घर आ गया। पहुंचा तो माँ ने पूछा कि इसे लगाएंगे कहाँ?
ड्राइंग रूम में कुछ फूल के गमले सजे थे, माँ ने बताया वो शो प्लांट्स है और ये पौधा उन महंगे पॉट्स के लिए उपयुक्त नहीं, इसे जगह भी चाहिए होगी और मेहमानों के कमरे में ऐसा साधारण-सा पौधा अच्छा नहीं लगता। राजू पौधा लेकर आया था तो वह उसे कहीं भी उपेक्षित छोड़ना भी नहीं चाहता था। माँ भी बच्चे का मन तोड़ना नहीं चाहती थी, उसका मन रखने के लिए उन्होंने ने एक गमला जो बहुत दिनों से खाली पड़ा था वो दे दिया। गमले की मिट्टी सख्त हो चली थी। कोई पौधा दिखता तो नहीं था किंतु मिट्टी में पुराने पौधे की सख्त सूखी लकड़ीनुमा जड़ें अब भी विद्यमान थी। कोड़ कर निकलने की कोशिश में हाथ भी जख्मी हो रहे थे, इसलिए उसी में थोड़ी जगह बना कर पौधे को लगा तो दिया। अब पौधा रखे कहाँ? 

कुछ दिन तो झाड़ पोंछ कर राजू के कमरे के पास रखा। अपनी जमीन से उखाड़ा गया नन्हा पौधा नई जगह में जमने के लिए देखभाल और समय मांग रहा था, और समुचित मिल नहीं पा रहा था। आते-जाते नज़र पड़ती तो कभी कोई पानी दे देता, पौधे से भी कोई बहुत अपेक्षा नहीं थी अतः कोई समय या ऊर्जा लगाना भी नहीं चाहता था। पहले जिस जमीन पर जन्मा था वहां अच्छा ही बढ़ रहा था, नई जगह पर ठमक गया, सही से बढ़ नहीं पा रहा था। सुखा भी नहीं मगर जंगली पौधे-सा हो गया। अपने लाये पौधे को देखकर राजू भी खुश नहीं हो पा रहा था। पौधे से स्नेह भांप कर माँ ने एक स्वस्थ पौधा सुंदर से पॉट में
रात को अकेले में पौधा सोचता रहा, जिसदिन राजू जीत कर उसे लाया था, राजू के साथ पौधा भी खुश था कि राजू ने उसे जीता है, उस दूसरे बच्चे के पास अपना घर भी नहीं था, वह ले जाता तो कुछ दिन बाद कहीं छोड़ ही देता। पर आज उसे महसूस हो रहा था कि गमले में उपेक्षित पड़े रहने से, बिना किसी के ध्यान के कुदरत के रख-रखाव में, वह अपनी जमीन पर ही अच्छा था।
न किसी एक की राह तकता, न उपेक्षित महसूस करता।
(Read in Caption) विद्यालय में सभी बच्चों को एक काम मिला, एक पौधा बाहर से लाकर अपने घर में लगाना था। राजू ने घर आते ही माँ को बताया और बोला कि कल मैं प्ले ग्राउंड से एक पौधा ले आऊंगा। माँ ने पूछा कि लगाएंगे कहाँ? राजू रोज देखता की माँ उस चौरे का बड़ा सम्मान करती है, रोज जल देती है दिया जलाती है तो उसके लाये पौधे के लिए भी उसे वैसे ही सम्मान की इच्छा थी। अतएव उसने तुलसी चौरे की ओर इशारा किया। माँ ने समझाया कि वो तो तुलसी की जगह है, उसे विस्थापित नहीं कर सकते। 
राजू ने कहा कि मैं तुलसी ही ले आऊंगा तो माँ ने स्पष्ट किया कि घर में एक ही तुलसी का पौधा होता है जब तक वो सूख न जाये उसकी जगह दूसरा नहीं लगा सकते।
इसलिए राजू तुलसी का पौधा न लाकर कोई अन्य पौधा लाये। 

राजू को खेल के मैदान में गुलाबी सदाबहार के फूलों का एक छोटा पौधा दिखा, किन्तु दूसरे बच्चे ने भी उसे ही घर ले जाने की इच्छा जताई, किन्तु जीत राजू की हुई और राजू उसे लेकर घर आ गया। पहुंचा तो माँ ने पूछा कि इसे लगाएंगे कहाँ?
ड्राइंग रूम में कुछ फूल के गमले सजे थे, माँ ने बताया वो शो प्लांट्स है और ये पौधा उन महंगे पॉट्स के लिए उपयुक्त नहीं, इसे जगह भी चाहिए होगी और मेहमानों के कमरे में ऐसा साधारण-सा पौधा अच्छा नहीं लगता। राजू पौधा लेकर आया था तो वह उसे कहीं भी उपेक्षित छोड़ना भी नहीं चाहता था। माँ भी बच्चे का मन तोड़ना नहीं चाहती थी, उसका मन रखने के लिए उन्होंने ने एक गमला जो बहुत दिनों से खाली पड़ा था वो दे दिया। गमले की मिट्टी सख्त हो चली थी। कोई पौधा दिखता तो नहीं था किंतु मिट्टी में पुराने पौधे की सख्त सूखी लकड़ीनुमा जड़ें अब भी विद्यमान थी। कोड़ कर निकलने की कोशिश में हाथ भी जख्मी हो रहे थे, इसलिए उसी में थोड़ी जगह बना कर पौधे को लगा तो दिया। अब पौधा रखे कहाँ? 

कुछ दिन तो झाड़ पोंछ कर राजू के कमरे के पास रखा। अपनी जमीन से उखाड़ा गया नन्हा पौधा नई जगह में जमने के लिए देखभाल और समय मांग रहा था, और समुचित मिल नहीं पा रहा था। आते-जाते नज़र पड़ती तो कभी कोई पानी दे देता, पौधे से भी कोई बहुत अपेक्षा नहीं थी अतः कोई समय या ऊर्जा लगाना भी नहीं चाहता था। पहले जिस जमीन पर जन्मा था वहां अच्छा ही बढ़ रहा था, नई जगह पर ठमक गया, सही से बढ़ नहीं पा रहा था। सुखा भी नहीं मगर जंगली पौधे-सा हो गया। अपने लाये पौधे को देखकर राजू भी खुश नहीं हो पा रहा था। पौधे से स्नेह भांप कर माँ ने एक स्वस्थ पौधा सुंदर से पॉट में

विद्यालय में सभी बच्चों को एक काम मिला, एक पौधा बाहर से लाकर अपने घर में लगाना था। राजू ने घर आते ही माँ को बताया और बोला कि कल मैं प्ले ग्राउंड से एक पौधा ले आऊंगा। माँ ने पूछा कि लगाएंगे कहाँ? राजू रोज देखता की माँ उस चौरे का बड़ा सम्मान करती है, रोज जल देती है दिया जलाती है तो उसके लाये पौधे के लिए भी उसे वैसे ही सम्मान की इच्छा थी। अतएव उसने तुलसी चौरे की ओर इशारा किया। माँ ने समझाया कि वो तो तुलसी की जगह है, उसे विस्थापित नहीं कर सकते। राजू ने कहा कि मैं तुलसी ही ले आऊंगा तो माँ ने स्पष्ट किया कि घर में एक ही तुलसी का पौधा होता है जब तक वो सूख न जाये उसकी जगह दूसरा नहीं लगा सकते। इसलिए राजू तुलसी का पौधा न लाकर कोई अन्य पौधा लाये। राजू को खेल के मैदान में गुलाबी सदाबहार के फूलों का एक छोटा पौधा दिखा, किन्तु दूसरे बच्चे ने भी उसे ही घर ले जाने की इच्छा जताई, किन्तु जीत राजू की हुई और राजू उसे लेकर घर आ गया। पहुंचा तो माँ ने पूछा कि इसे लगाएंगे कहाँ? ड्राइंग रूम में कुछ फूल के गमले सजे थे, माँ ने बताया वो शो प्लांट्स है और ये पौधा उन महंगे पॉट्स के लिए उपयुक्त नहीं, इसे जगह भी चाहिए होगी और मेहमानों के कमरे में ऐसा साधारण-सा पौधा अच्छा नहीं लगता। राजू पौधा लेकर आया था तो वह उसे कहीं भी उपेक्षित छोड़ना भी नहीं चाहता था। माँ भी बच्चे का मन तोड़ना नहीं चाहती थी, उसका मन रखने के लिए उन्होंने ने एक गमला जो बहुत दिनों से खाली पड़ा था वो दे दिया। गमले की मिट्टी सख्त हो चली थी। कोई पौधा दिखता तो नहीं था किंतु मिट्टी में पुराने पौधे की सख्त सूखी लकड़ीनुमा जड़ें अब भी विद्यमान थी। कोड़ कर निकलने की कोशिश में हाथ भी जख्मी हो रहे थे, इसलिए उसी में थोड़ी जगह बना कर पौधे को लगा तो दिया। अब पौधा रखे कहाँ? कुछ दिन तो झाड़ पोंछ कर राजू के कमरे के पास रखा। अपनी जमीन से उखाड़ा गया नन्हा पौधा नई जगह में जमने के लिए देखभाल और समय मांग रहा था, और समुचित मिल नहीं पा रहा था। आते-जाते नज़र पड़ती तो कभी कोई पानी दे देता, पौधे से भी कोई बहुत अपेक्षा नहीं थी अतः कोई समय या ऊर्जा लगाना भी नहीं चाहता था। पहले जिस जमीन पर जन्मा था वहां अच्छा ही बढ़ रहा था, नई जगह पर ठमक गया, सही से बढ़ नहीं पा रहा था। सुखा भी नहीं मगर जंगली पौधे-सा हो गया। अपने लाये पौधे को देखकर राजू भी खुश नहीं हो पा रहा था। पौधे से स्नेह भांप कर माँ ने एक स्वस्थ पौधा सुंदर से पॉट में