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ज़िन्दगी अब दाँव पे लगा कर देख ग़र इश्क़ किया है तो

ज़िन्दगी अब दाँव पे लगा कर देख 
ग़र इश्क़ किया है तो निभाकर देख 

अश्क़ बनकर गिरते हैं लहू आँखों से 
किसी रोज़ अकेले में मुझे आकर देख

यूँ तो मुंतज़िर ज़माना है दीदार को मेरे  
बात तब हो जब तू मुस्कराकर देख  

इस दौर में दोस्तों से मिलने के बदले  
क्यों न अब दुश्मनों को आज़मा कर देख #ऐसे_भी
ज़िन्दगी अब दाँव पे लगा कर देख 
ग़र इश्क़ किया है तो निभाकर देख 

अश्क़ बनकर गिरते हैं लहू आँखों से 
किसी रोज़ अकेले में मुझे आकर देख

यूँ तो मुंतज़िर ज़माना है दीदार को मेरे  
बात तब हो जब तू मुस्कराकर देख  

इस दौर में दोस्तों से मिलने के बदले  
क्यों न अब दुश्मनों को आज़मा कर देख #ऐसे_भी