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खफ़ा थी रौनकें महफ़िल, महफ़ूज़ ठिकाना ना था आँखें तनी

खफ़ा थी रौनकें महफ़िल, महफ़ूज़ ठिकाना ना था
आँखें तनी सबकी "बेखौफ़ गालियाँ" खाना ना था
एक दो मिली मिलावट की बाहें, जिसमें समाना था
अब हास्य कवि सम्मेलन में मुझे दुबारा जाना न था

©अनुषी का पिटारा.. #हास्य_कवि_सम्मेलन
खफ़ा थी रौनकें महफ़िल, महफ़ूज़ ठिकाना ना था
आँखें तनी सबकी "बेखौफ़ गालियाँ" खाना ना था
एक दो मिली मिलावट की बाहें, जिसमें समाना था
अब हास्य कवि सम्मेलन में मुझे दुबारा जाना न था

©अनुषी का पिटारा.. #हास्य_कवि_सम्मेलन