समाज ने उपजें हैं कई हजारों रोग, नारी अपमान करके भी बच जाते लोग। ना जांचा ना परखा कुछ भी,सोच ने नारी को बाँझ भी कह दिया, पुरुष के पुरुषत्व को ठेस न पहुँचे बस,हर दोष को औरत के सर मढ़ने का हक किसने दिया? समाज के लोग सोच जनित रोग के शिकार, अपनी इज़्ज़त भी नारी,वही बदनामी का आधार। बेटे बचा कर रख लिए,बहू ही पिसती रही, बाँझ कहलाने के बावजूद,पति की परेशानी छिपाती रही। 9 "सोच जनित रोग" #रमज़ान_कोराकाग़ज़ #मेरी_बै_रा_गी_कलम