मुझको मोहपाश में बांधे, खड़ी ख्वाहिश दूजे किनारे। नयन ताकें राह तिहारे, देख जीत मिथ्या से हारे।। केश खुले; अधर भीगे, प्रीत लौ के खड़े सहारे। दो टूक वचन को रीझे, फिरते देहरी सरहद मारे।। ग्रीष्म तपन है आह बांधे, शीत कसक वहन न सारे। सुबह की ये दरख़्वास्त मांगे, मेरी रजनी; तेरे क्षुब्ध तारे।। ©गुस्ताख़शब्द #सच #मिथ्या #गुस्ताख़शब्द #जिंदगी #कहानी #प्रीत