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मुझको मोहपाश में बांधे, खड़ी ख्वाहिश दूजे किनारे।

मुझको मोहपाश में बांधे,
खड़ी ख्वाहिश दूजे किनारे।
नयन ताकें राह तिहारे,
देख जीत मिथ्या से हारे।।

केश खुले; अधर भीगे,
प्रीत लौ के खड़े सहारे।
दो टूक वचन को रीझे,
फिरते देहरी सरहद मारे।।

ग्रीष्म तपन है आह बांधे,
शीत कसक वहन न सारे।
सुबह की ये दरख़्वास्त मांगे,
मेरी रजनी; तेरे क्षुब्ध तारे।।

©गुस्ताख़शब्द #सच #मिथ्या #गुस्ताख़शब्द #जिंदगी #कहानी #प्रीत
मुझको मोहपाश में बांधे,
खड़ी ख्वाहिश दूजे किनारे।
नयन ताकें राह तिहारे,
देख जीत मिथ्या से हारे।।

केश खुले; अधर भीगे,
प्रीत लौ के खड़े सहारे।
दो टूक वचन को रीझे,
फिरते देहरी सरहद मारे।।

ग्रीष्म तपन है आह बांधे,
शीत कसक वहन न सारे।
सुबह की ये दरख़्वास्त मांगे,
मेरी रजनी; तेरे क्षुब्ध तारे।।

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