इस मरुस्थलीय ऱस हीन जगत मे ज़ब कोई कोयल मृदुल गीत गए तो उस कोयल को पागल न कहे तो क्या कहे इस व्यर्थपूर्ण अर्थहीन सन्नाटे मे ऐसी मधुवाणी सुन कर ये आभास होने लगता हैँ अभी सब कुछ समाप्त नहीं हुआ हैँ अभी सब कुछ समाप्त नहीं हुआ हैँ