तेरा इंतज़ार दिल को क्यों रहता क्यों बेचैनियों की दास्तां बन जाता नयनों में तेरा चेहरा क्यों उभर आता प्यार की गलियों का सफर क्या इंतजार के वश में हो जाता इंतजार को ही प्रेम रीत मान तेरे आने से बिन शिकायत चुप क्यों हो जाता सवाल यही उभर आता क्या प्रेम भी इंतजार का गुलाम हो जाता ✍️कमल भंसाली