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मेरी बातो को,,, बिना सुने ही नकार देती हैं मेरी फि

मेरी बातो को,,, बिना सुने ही नकार देती हैं
मेरी फिकर वाले ख्यालों को, अक्सर यूं ही मार देती है
मुकम्मल हो नहीं सकता, सब तुम्हारी सोच जैसा हो
यह दुनिया है समझते समझते उम्र निकल जाती है
कुमार विक्रांत

©Vikrant Jain
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