बनके अब्र मेरे आँखो पे छाई रहती है ये जिंदगी मुझसे बहुत शरमाई रहती है हर ज़फ़र मुझको ज़ेबा ही करती है इक उन्ही का ज़र्ब तड़पाई रहती है ख्वाहिस है की उनके तस्वीर को चूमते रहुँ मेरी फ़ुगां को सुनिए इसमें गहराई रहती है वो मुझे चाहती भी तो बहोत है मगर पासबानी के कारण हमारी जुदाई रहती है उनका पयाम ही काफी है लड्डू तेरे खातिर किसी के आगोश मे नही ये तस्र्णाई रहती है ✍ लड्डू बन के अब्र.... #peace