जिस कौयल की मीठी कूक सुन कर तुम्हारे उदगारो का उल्लास बड़ जाता है.. वो कोयल की विकल् वाणी का उछवास है ज़ो अपने प्रियतम के वियोग से उतपन हुई पीड़ा के कारण . "कूक " बन कर प्रकट हुई है... उस प्रियतम के लिये ज़ो उसकी भावनाओ का मधुर आधार है ज़ो उसे छोड़ कर न जाने कहा चला गया है ©Parasram Arora कोयल की कूक